Saturday 27 July 2013

कैद पंछी .

पिंजरे में कैद पंछी ,
जिस तरह से ,
मुक्त होने के लिए ,
छटपटाता है ,
वैसे ही तुम से ,
मिलने के लिए ,
मुझे व्याकुल समझो .

घनीभूत पीडाओं के आगे ,
जब भाषा भी ,
असमर्थ हो जाती है ,
और
शब्दहीन आँखें बहुत कुछ ,
कह जाने में ,
हो जाती समर्थ ,
ठीक वैसे ही ,
मेरी पीड़ा से भरी ,
सूक्ष्म अभिव्यक्ति को ,
समझाने की मेरी ,
कोशिश को जानो .

किसी हवा के ,
महीन झोंके की तरह ,
तुम्हारी तरफ ,
बहता चला जा रहा हूँ ,
जिस से तुम्हारा संस्पर्श ,
बाहर से पाते हुए ,
तुम्हारी साँसों के साथ ,
तुम्हारे अंतर में ,
सदा के लिए ,
गुल जाने के लिए ,
उतर जाऊं ,
जिस से मैं यह जान सकूं ,
आखिर कर तुम्हारे अंतर में ,
मेरे लिए कितनी जगह है .

त्रिलोकी मोहन पुरोहित , राजसमन्द ( राज.)

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