Saturday 27 July 2013

सुबह

रात गई ,
दिन हो गया ,
कौन सी बड़ी बात हो गयी ,
सुबह होती ,
तब कोई ,
नई बात होती .
रात के बाद दिन का होना ,
काल चक्र का हिस्सा है ,
इंतज़ार है ,
नई नवेली दुल्हन की तरह ,
सजी-धजी सुबह के होने का .

रोज ही रात होती है ,
दिन की तुलना में ,
बहुत लम्बी ,
और
सपने भी ,
आँखे रोज ही देखती है .
दिन के होते ही ,
सपने टूट जाते हैं ,
सुबह के अभाव में .
सपने पूरे नहीं होते ,
आँख है कि ,
फिर रात में ,
सपने देखने के लिए ,
तैयार हो जाती,
कितनी हास्यास्पद नियति है .

रात में देखे थे खेत ,
उर्वरा के साथ ,
जिन में लहलहाई थी ,
धान की फसल .
चिड़िया चहक रही थी ,
और
हवा बहुत ही खुश मिजाज थी ,
लेकिन दिन के होते ही ,
खेत बंजर था ,
चिड़िया मरी हुई थी ,
और हवा में घुटन भरी थी ,
आखिर कर ,
सुबह जो नहीं हुई थी ,
लेकिन सुबह को भी ,
हमार है इंतज़ार .

- त्रिलोकी मोहन पुरोहित . राजसमन्द ( राज . )

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