Saturday 27 July 2013

सत्य के नहीं होते पंख .

सत्य के नहीं होते पंख ,
सत्य को ले कर ,
भरनी होती है उडान ,
शर्त यहाँ कुछ भी नहीं है ,
बस-
सत्य के साथ ,
उडान भरने के लिए ,
होंसला इंतज़ार करता है .

सत्य को ,
ज़िंदा रखने के लिए ,
कई-कई बार ,
मरना भी पड़ता है ,
तब कहीं जा कर ,
सत्य साँसे लेता है ,
तुम्हारी मृत्यु ही ,
सत्य का है जीवन ,
बस-
ऐसे हालातों में ,
मृत्यु तुम से गहरा ,
प्यार करती है .

सत्य मिटटी में ,
पनपता है ,
झोंपड़ों में ,
खिलखिलाता है ,
धूप की तंदूर में सिक कर ,
बिलकुल करारा हो जाता है ,
जिंदगी से खेलने वाले ,
दलालों पर खुल कर ,
मारता है फबतियां ,
और अंत में ,
बस-
रात की दूधिया रोशनी से उलझ ,
फिर मिट्टी में मिल जाता है ,
फिर से मुखर होने के लिए .

- त्रिलोकी मोहन पुरोहित , राजसमन्द ( राज.)

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