Tuesday 20 August 2013

रेशा-रेशा मिल-मिल कर , धागा बनता। 
दिल के सात रंगों से रंग , धागा सजता। 

कोमल हाथों ने छू कर ,
नर्म बनाया. 
नाजुक रिश्तों की गर्मी से ,
गर्म बनाया.

मीठी यादों को ले-ले कर , धागा चलता। 
दिल के सात रंगों से रंग , धागा सजता।

पंख नहीं है फिर भी धागा ,
उड़-उड़ आता.
पैर नहीं है फिर भी धागा ,
चल-चल आता.

श्रावण की बदली पे चढ़ , धागा बढ़ता। 
दिल के सात रंगों से रंग , धागा सजता।

कुमकुम-अक्षत भरा कलश ,
साथी लाया.
मधुर भाव की मुग्धा मानी ,
सहचरी लाया.

भैया-बहिना अमर रहो जी ,धागा भजता।
दिल के सात रंगों से रंग , धागा सजता।

धागा भारी या हल्का है ,
क्या फर्क पडेगा.
रेशम इस में या चांदी है ,
क्या फर्क पडेगा .

पर सिक्कों के बंटवारे में , धागा मरता। 
दिल के सात रंगों से रंग , धागा सजता।

मैं जैसा भी जैसे भी हूँ ,
धन तुम्हारा.
तुम आओ कि मैं उड़ आऊं ,
हंस तुम्हारा.

इस पूनो से नहीं सुबकना , धागा कहता। 
दिल के सात रंगों से रंग , धागा सजता।

- त्रिलोकी मोहन पुरोहित , राजसमन्द (राज)

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